Vedic Ganit Meeting of Shiksha Sanskriti Utthan Nyas in JNU

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली के वैदिक गणित के टोली की प्रत्यक्ष बैठक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल आफ कम्प्यूटेशनल इटिग्रेटिव सांइस के डाॅ गजेन्द्र प्रताप सिंह जी गणित प्रयोगशाला में दिनांक 22 अप्रैल, 2023 को सायं 6 बजे सम्पन्न हुआ जिसमें विश्वविद्यालय के गणित विभाग के डाॅ गजेन्द्र प्रताप सिंह जी, किरोड़ीमल महाविद्यालय के गणित विभाग एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली के वैदिक गणित के सहसंयोजक डाॅ प्रेमपाल सिंह जी, देशबंधु महाविद्यालय के गणित विभाग से डाॅ हरिन्द्री जी, भारतीय विद्यापीठ के गणित विभाग से डाॅ सुशील जी एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली के वैदिक गणित के संयोजक अनिल कुमार ठाकुर उपस्थित रहे जिसमें शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के वैदिक गणित के वार्षिक कैलेंडर पर चर्चा हुई जिसमें प्रत्येक महीने में एक अथवा दो भारतीय गणितज्ञ को शामिल किया गया एवं उस महिने में सम्मिलित भारतीय गणितज्ञ एवं उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए लेक्चर सिरीज शुरू करने पर सहमति बनी। साथ ही आगामी मई महीने में भारतीय खगोलविद एवं गणितज्ञ वराहमिहिर के जीवन एवं उनके कार्यों को प्रस्तुत करने का निर्णय लिया गया। इस बैठक के दूसरे चरण में वैदिक गणित के एक बिन्दु वर्ग पर एक प्रेजेंटेशन दिया गया जिसमें वैदिक गणित के माध्यम से वर्ग निकालने की अनेक विधियों के साथ साथ किसी संख्या द्वंद अर्थात् किसी संख्या का उसी संख्या से गुणन करने से प्राप्त गुणनफल वर्ग कहलाता है।
वर्ग प्राप्त करने की विधियाँ –
वैदिक गणितीय विधि
प्रथम – एकाधिकेन विधि
इस विधि से ऐसी संख्याओं का वर्ग प्राप्त किया जा सकता है जिसके अंत में अर्थात् इकाई अंक के स्थान पर 5 हो।
बीजगणितीय विश्लेषण

द्वितीय – एकन्यूनेन विधि
इस विधि से ऐसी संख्याओं का वर्ग प्राप्त किया जा सकता है जिसमें अंक 9 के रुप में हो।

तृतीय – निखिलम् विधि
इस विधि में वैदिक गणित के सूत्र यावदूनम् तावदूनीकृत्य वर्गं च योजयेत् अर्थात् जितना कम अथवा अधिक हो उस संख्या में उतना कम या अधिक कर उसमें वर्ग की भी योजना करें, इस तरह की संख्याओं के वर्ग प्राप्त किया जा सकता जो आधार के आसपास हो अर्थात् आधार से बड़ी अथवा आधार से छोटी हो।

चतुर्थ – आनुरुप्येण विधि
इस विधि का प्रयोग सामान्यतः दो अंकीय संख्या का वर्ग प्राप्त करने के लिए जाता है। इस विधि में उत्तर के तीन भाग होते हैं बांया भाग, मध्य भाग एवं दांया भाग। सर्वप्रथम दांये भाग में इकाई अंक का वर्ग रखते हैं उसके बाद मध्य भाग में इकाई तथा दहाई अंक का गुणनफल रखते हैं एवं उतने ही मान को पुनः मध्य भाग में लिखकर योग करते हैं तथा बांये भाग में दहाई अंक का वर्ग रखते हैं। साथ ही इस बात का ध्यान भी रखते हैं कि मध्य भाग एवं दायें भाग में एक से अधिक अंक न लिखा जाए यदि एक से अधिक अंक आता है तो इकाई अंक को लिखकर शेष अंक को बायें भाग के साथ योग कर देते हैं।

प्राचीन भारतीय गणितीय विधि
भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य द्वारा दी गई वर्ग प्राप्त करने की विधियाँ –
समद्विघातः कृतिरुच्यतेऽय स्थाप्योन्त्यवर्गो द्विगुणान्त्यनिघ्ना ।
स्वस्वोपारिष्टाच्च तथाऽपरेऽङ्कास्त्यकत्वान्त्यमुत्सार्य पुनश्च राशिम् ।। 8।।
खण्डद्वयस्यामिनिहतिर्द्विनिघ्नी तत्खण्डवर्गैक्ययुता कृतिर्वा ।
इष्टोनयुगृराशिवधः क़तिः स्यादिष्टस्य वर्गेण समन्वितो वा।। 9।।
अर्थात्
समान दो अंको के घात को वर्ग कहते हैं।

यदि एकाधिक अंको का वर्ग करना हो तो) अंतिम संख्या के वर्ग को स्थापित कर पुनः अंतिम अंक को द्विगुणित कर उसे अग्रीम अंको को गुणा कर तद्त अंकों के उपर रखें। पुनः उस अंक को छोड़कर उसके बाद वाले अंक का वर्ग स्थापित कर उसके धुने से अग्रीम अंकों को गुणित करना चाहिए। बार-बार इसी प्रकार क्रिया कर अंको का योग करने से अभिष्ट संख्या का वर्ग होता है।

अभिष्ट संख्या का दो खण्ड कर दोनों के गुणनफल को द्विगुणित कर गुणनफल में दोनों खण्डों के वर्गों को जोड़ने से वर्ग होता है।

अभिष्ट संख्या में कल्पित इष्ट संख्या को जोड़कर तथा घटाकर दोनों का गुणा कर गुणनफल में इष्ट संख्या का वर्ग जोड़ने से अभिष्ट वर्ग होता है।

भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य एवं महावीराचार्य के उक्त विषय पर योगदान को भी अनिल कुमार ठाकुर के द्वारा प्रस्तुत किया गया।

 

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