16 Sutras Of Vedic Maths || वैदिक गणित के 16 सूत्र

आज हम  आपको वैदिक गणित के 16 सूत्र (16 Sutras Of Vedic Maths ) को विस्तार बताएंगे। ताकि आप vedic maths को अच्छे से सीख सके। 

इन्हें भी पढ़ें . . .

16 Sutras Of Vedic Maths (सूत्र-1)एकाधिकेन पूर्वेण सूत्र ( Ekadhikena Purvena Sutra )

गोवर्धन पीठ, पूरी के 143 वें शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में प्रथम सूत्र “एकाधिकेन पूर्वेण” है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ ( ekadhikena purvena definition ) होता है  “पहले से एक अधिक के द्वारा ”  (One more than the existing one) जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है। इस पोस्ट में  16 sutras of vedic maths in hindi with examples  दिया गया है। 

सर्वप्रथम भारतीय संख्या पद्धति इसी क्रम में बढ़ती है, 1 से एक अधिक करने पर 2, 2 से एक अधिक करने पर 3 इत्यादि। इस सूत्र इस प्रकार ज्ञान देकर छात्र-छात्राओं को जोड़ना भी सिखाया जा सकता है, इस सूत्र ( vedic maths ekadhikena purvena ) के प्रयोग द्वारा  विशेष परिस्थितियों में गुणा  किया जा सकता है जब किसी दो संख्याओं के इकाई-अंकों का योग  दस हो तथा दहाई या शेष अंक  समान  हो।
जैसे – 25 × 25, 38 × 32, 46 × 44

उपरोक्त उदाहरण (example) में इकाई अंकों का योग दस है –
5 + 5 = 10
8 + 2 = 10
6 + 4 = 10 इत्यादि
तथा दहाई या शेष अंक समान है –
2 – 2, 3 – 3, 4 – 4

Ekadhikena purvena example :

उदाहरण :- (2)
38 × 32
= 3 × ( 3 + 1) / 8 × 2
= 3 × 4 / 16
= 12 16 (Ans)

उदाहरण :- (3)
46 × 44
= 4 × ( 4 + 1) / 6 × 4
= 4 × 5 / 24
= 20 24 (Ans)

अतः हम कह सकते हैं कि एकाधिकेन पूर्वेण सूत्र के माध्यम से हम संबंधित गणितीय संक्रिया को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

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सूत्र – 2 Nikhilam Navatashcaramam Dashatah (निखिलं नवतश्मचरमं दशतः)

 

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में  सूत्र “निखिलं नवतश्मचरमं दशतः ” है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — “सभी नौ में से परन्तु अन्तिम दस में से । Nikhilam navatashcaramam dashatah in english  ( All from nine & last from ten) जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है। सर्वप्रथम भारतीय संख्या पद्धति में इस सूत्र का प्रयोग पुरक संख्या ( योग 9) तथा समपूरक संख्या ( योग 10) प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

पूरक संख्या ( योग 9) —
0 की पुरक संख्या 9
1 की पुरक  संख्या 8
2 की पुरक संख्या 7
3 की पुरक संख्या 6
4 की पुरक संख्या 5
इत्यादि

समपूरक संख्या ( योग 10) —
1 का समपूरक संख्या 9
2 का समपूरक संख्या 8
3 का समपूरक संख्या 7
4 का  समपूरक संख्या 6
5 का समपूरक संख्या 5

इस सूत्र के प्रयोग द्वारा  विशेष परिस्थितियों में गुणा  किया जा सकता है जब किसी दो संख्याओं में एक संख्या तो कुछ भी हो परन्तु दुसरी संख्या सिर्फ 9 की आवृत्ति में हो जैसे —

2148 × 9999, 4378 × 9999, 456 × 99999

nikhilam navatashcaramam dashatah examples नीचे दिया गया है।

उदाहरण – (2) 

4378 × 9999
=  4377 / 5622
=  43775622

उदाहरण – (3)
456 × 99999
= 455 / 99 / 544
= 45599544

उपरोक्त उदाहरण में निखिलं नवतश्मचरमं दशतः के अलावा वैदिक गणित का एक अतिरिक्त सूत्र एकन्यूनेन पूर्वेण जिसका अर्थ “पहले से एक कम के द्वारा ” ( One less than the existing one) होता है, का प्रयोग हुआ है।
अतः हम कह सकते हैं कि निखिलं नवतश्मचरमं दशतः सूत्र तथा एकन्यूनेन पूर्वेण सूत्र के माध्यम से हम संबंधित गणितीय संक्रिया को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

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16 Sutras Of Vedic Maths

 

सूत्र – 3 Urdhva Tiryagbhyam Sutra || ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् 

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में सूत्र ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ ( Urdhva Tiryagbhyam Meaning   होता है – सीधे ( खड़े ) और तिरछे दोनों प्रकार से । Urdhva Tiryagbhyam Sutra in english ( Vertically & Crosswise )

ऊर्ध्व = सीधा ( खड़ा) =  ( उपर-नीचे)
तिर्यक् = तिरछा = \/
जिसका प्रयोग गणित के विभिन्न संक्रियाओं में किया जाता है।
इस सूत्र के प्रयोग द्वारा किसी भी परिस्थितियों में दो संख्याओं को गुणा  किया जा सकता है जैसे —
23 × 54, 123 × 211, (2p + 3) ( 3p + 5)

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Urdhva Tiryagbhyam Examples नीचे दिया गया है।

उदाहरण — (1)
25 × 54
हल –
2     3
×  5    4
– – – – – – – – – – – – –
12 /  4 / 2

(1) प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
3
×  4
– – – – – – –
12

(2) प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
2     3
×  5    4
– – – – – – – – – – – – – – –
( 2 × 4) + ( 3 × 5)
= 8 + 15
= 23
23 + अतिरिक्त अंक
23 + 1 = 24

(3) द्वितीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
2
×  5
– – – – – – – – –
10
10 + अतिरिक्त अंक
10 + 2 = 12
अंतिम बायें खण्ड में 12 पूरा का पूरा लिख दें।
अतः उत्तर = 1242

उदाहरण — (2)
123 × 211
हल —
1         2        3
×     2         1        1
– – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
2  /  5 /  9 /  5 / 3
(1) प्रथम स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
3
×   1
– – – – – – – – – –
3
(2) प्रथम तथा द्वितीय स्तंभ का तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणन फल का योग
2     3
×  1    1
– – – – – – – – – – – – – – –
( 2 × 1 ) + ( 3 × 1 )
=  2 + 3  =  5

(3) प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों में बाहर-बाहर के स्तंभों का तिर्यक् गुणा तथा मध्य स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा कर, प्राप्त गुणनफलों का योग।
1         2        3
×     2         1        1
– – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
( 1 × 1) + ( 2 × 3) + ( 2 × 1)
= 1 + 6 + 2 = 9
(4) दायें से द्वितीय तथा तृतीय स्तंभों तिर्यक् गुणा करके प्राप्त गुणनफल का योग प्राप्त करें।
1    2
×  2    1
– – – – – – – – – – – – – – –
( 1 × 1 ) + ( 2 × 2 )
=  1 + 4  =  5
(5) दायें से तृतीय स्तंभ का ऊर्ध्व गुणा
1
×   2
– – – – – – – – – –
2
अतः उत्तर = 2 5 9 5 3

अतः हम कह सकते हैं कि ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम् सूत्र के माध्यम से हम संबंधित अंकगणितीय तथा बीजगणितीय संक्रिया को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

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सूत्र – 4 – परावर्त्य योजयेत्

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 17 सूत्र तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में  सूत्र ” परावर्त्य योजयेत् ” है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — ” पक्षान्तरण कर उपयोग करें ( Transpose & Apply ) इस सूत्र के प्रयोग द्वारा भाग संक्रिया करेंगे। भाजक आधार से छोटा है या बड़ा है — इस बात का  Paravartya Method  विधि पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। सूत्र का अर्थ है ” चिन्ह परावर्तित कीजिए और संक्रिया आरंभ कीजिए “।

Paravartya yojayet Examples नीचे दिया गया है।

उदाहरण (1 )
X + 25 = 75
या, X + 25 – 25 = 75 – 25
या, X = 50

विश्लेषण —
(1) समीकरण के सामान्य गुण को परावर्त्य योजयेत् सूत्र द्वारा स्पष्ट करने के लिए चिन्ह + को — करके या पक्षान्तर करके संक्रिया किया जाता है
(2) यहां + 25 को —25 बना कर समीकरण के दोनों तरफ योग किया गया
(3) अतः समीकरण को हल करने पर X = 50 प्राप्त हुआ।

अतः हम कह सकते हैं कि परावर्त्य योजयेत् सूत्र के माध्यम से हम संबंधित अंकगणितीय भाजन क्रिया तथा बीजगणितीय समीकरणों  को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

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सूत्र – 5 Shunyam Saamyasamuccaye || शून्यं साम्यमुच्चये 

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में सूत्र शून्यं साम्यमुच्चये (Shunyam Saamyasamuccaye) है, संस्कृत भाषा के इस सूत्र हिंदी में अर्थ होता है — “समुच्चय समान होने पर शून्य होता है। ” (When the Samuchaya are the same, that Samuchaya is Zero. ) जिस सूत्र के प्रयोग द्वारा विषेश प्रकार के एक घातीय समीकरणों का हल मात्र अवलोकन से ही एक पंक्ति में लिखा जा सकता है।

उदाहरण – (1)
समीकरण ( X + 3) + ( 2X + 5) + 4 = 2 ( X + 6) को सरल कीजिए।
हल –
दोनों तरफ X रहित परस्पर समान है = 12
अतः X = 0 ( Ans)
उपरोक्त एकघाती समीकरण के दोनों पक्षों में चर राशि रहित ( स्वतंत्र पद) समान होते हैं तो चर राशि का मान शून्य होता है।

उदाहरण – (2)
समीकरण  1 / ( 2x – 1)  + 1/ ( 3x – 1) = 0 को हल कीजिए।
हल —
दोनों भिन्नों का अंश परस्पर समान = 1 है।
अतः
हरों का योग शून्य होगा।
( 2x – 1)  + ( 3x – 1) = 0
या, 5x – 2 = 0
या, 5x = 2
अतः x = 2 / 5 ( Ans)

विश्लेषण —
उपरोक्त प्रश्न में अंश समान है अर्थात साम्य्
अतः हरों का योग शून्य होगा अर्थात शून्य साम्यमुच्चये

उदाहरण – (3)
(x – 3) /(x-4) + (x-4) /(x-5) = (x-2) /(x-3) + (x-5)/(x-6)
बायां पक्ष के अंशों का योग = दायाँ पक्ष के अंशों का योग
( x – 3) + ( x – 4) = ( x – 2) + ( x – 5)
2x – 7 = 2x – 7
हरों का समुच्चय शून्य होगा
( x – 4 ) + ( x – 5 ) = ( x – 3 ) + ( x – 6 ) = 0
2x – 9 = 2x – 9 = 0
या 2x – 9 = 0
अतः x = 9 / 2

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विश्लेषण —
उपरोक्त प्रश्न में बायां पक्ष के अंशों का योग = दायाँ पक्ष के अंशों का योग अतः हरों का समुच्चय शून्य होगा अर्थात शून्यं साम्यमुच्चये।
अतः हम कह सकते हैं कि परावर्त्य योजयेत् सूत्र के माध्यम से हम संबंधित  बीजगणितीय समीकरणों  को जहाँ कुछ सेकंड में कर सकते हैं वही यह हमें जीवन में दक्षता तथा कार्यकुशलता भी प्रदान करती है।

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सूत्र – 6 Anurupye Shunyamanyat || अनुरूप्ये शून्यमन्यत्

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है अनुरूप्ये शून्यमन्यत्

अनुरुपता होने पर दूसरा शून्य होता है।
If one is in the ratio, the other one is zero.

Anurupye Shunyamanyat example नीचे दिया गया है।

उदाहरण :-
3x + 5y = 5
4x + 1 0y = 10
उपरोक्त समीकरण में y के गुणको का अनुपात वही है जो निरपेक्ष पदों का।
अतः x = 0

अभ्यास :-
x तथा y के लिए हल करें :-
(1)  x + 3y = 7,   2x + 6y = 14
(2) 5x + 9y = 11 ,  x + 27y = 33

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सूत्र – Sankalana Vyavakalanabhyam || संकलनव्यवकलनाभ्याम्

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र Sankalana Vyavakalanabhyam है।


संकलनव्यवकलनाभ्याम् सूत्र हिंदी में अर्थ होता है  ( जोड़कर और घटाकर) 

Sankalana vyavakalanabhyam in english (By addition and subtraction)
एक विशिष्ट प्रकार के दो चर वाले रैखिक समीकरण जिनमें x तथा y की गुणक संख्यात्मक दृष्टि से परस्पर अदला-बदली होती हैं। इन्हें हल करने के लिए सूत्र संकलनव्यवकलनाभ्याम् का प्रयोग अत्यंत सुगम रहता है, जिसके द्वारा (x + y) तथा (x – y) के मान ज्ञात हो जाते हैं। इन दोनों समीकरणों में पुनः इस सूत्र का प्रयोग कर x तथा y का मान ज्ञात कर लिया जाता है।

उदाहरण :-
84x + 41y = 166  – – – — (1)
41x + 84y = 209  – – – – – (2)
समीकरण (1) तथा (2) को संकलन (जोड़ने) पर

125x + 125y = 375
x + y = 3 – – – – – – – – – (3)
समीकरण (1) में से (2) को व्यवकलन (घटने ) पर
43x – 43y = – 43

x – y = – 1   – – – – – – – – -(4)
समीकरण (3) तथा (4) को जोड़ने पर
2x = 2
x = 1
समीकरण (3) में से (4) को घटने पर
2y = 4
y = 2
अतः उत्तर     x = 1, y = 2

अभ्यास :-
x तथा y के लिए हल करें :-
(1) 31x + 23y = 39, 23x + 31y = 15
(2) 148x + 231y = 527, 231x + 148y = 610

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सूत्र – Puranapuranabyham || पूरणापूरणाभ्याम्

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र  Puranapuranabyham है।

अपूर्ण को पूर्ण करके।
By completing.
द्विघात समीकरण
aX² + bX + c = 0
X = {- b ± (b² – 4ac)½} / 2a

इसी सूत्र पर आधारित विधि द्वारा निकाला गया है
aX² + bX + c = 0
X² + (b/a)X + c/a = 0
X² + (b/a)X  = – c/a

बाईं ओर वर्ग को पूर्ण करने पर
X² + (b/a)X + (b² / 4a²) = – c/a + (b² / 4a²)
(X + b/2a)² = (b² – 4ac) / 4a²
X + b/2a =  ± {(b² – 4ac) / 4a²}½
X = {- b ± (b² – 4ac)½} / 2a

Puranapuranabyham Examples नीचे दिया गया है।

अभ्यास :-
x  के लिए हल करें :-
(1) 5x² – 7x – 6 = 0
(2) x + 6/x = 5
(3) x⁴ – 5x² + 6 = 0

सूत्र – Chalana-Kalanabyham ||  चलनकलनाभ्याम्

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है चलन कलनाभ्याम्

चलन-कलन के द्वारा।
By calculus
वैदिक गणित में चलन कलन का प्रयोग प्रारंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाता है। गुणनखण्ड, द्विघात समीकरण के हल आदि सूत्र ‘चलन कलनाभ्याम्’ से सरलतापूर्वक हल किए जाते हैं।
द्विघात समीकरण का हल —
द्विघात बहुपद की प्रथम अवकल गुणन संख्या के वर्ग को विविक्त करके समान रखने पर प्राप्त होता है।
उदाहरण :-
aX² + bX + c = 0
(2aX + b)² = b² – 4ac
2aX + b = ± (b² – 4ac)½

chalana-kalanabyham example नीचे दिया गया है।

अभ्यास :-
x के लिए हल करें :-
(1) 2x² + 3x – 4 = 0
(2) ( x² – 5x)² – 7(x² – 5x) + 6 = 0
(3) 3a²x² + 8abx +4b² = 0

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सूत्र –10 Yaavadunam || यावदूनम्

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है  यावदूनम् (Yaavadunam)

जितना कम है अर्थात विचलन
The deficiency
संख्या के आधार से जितनी भी न्यूनता हो उसमें उतनी न्यूनता और करें और उसी न्यूनता का वर्ग भी रखें।
यह ‘निखिलम् ‘ सूत्र से स्वभाविक रूप से निकलनेवाला सहज परिणाम है।
उदाहरण :-
(98)² =  ( 98 – 2) / 2²      आधार = 100
=    96 / 04         न्यूनता = 100 – 98 = 2
=    9604  (उत्तर)

अभ्यास :-
(1) (989)²
(2) (9993)²
(3) (999988)²

सूत्र – 11 Vyashtisamanstih || व्यष्टिसमष्टिः

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है  व्यष्टिसमष्टिः (Vyashtisamanstih) 

एक को पूर्ण और पूर्ण को एक मानते हुए

Vyashtisamanstih in english  – Whole as a one and one as a whole
 
वैदिक गणित में एक विशिष्ट प्रकार के चतुर्घात समीकरण, जिनमें बाम पक्ष दो द्विपदों के चतुर्घातों का योग रहता है तथा दाहिने पक्ष में उनका मान एक गणितीय संख्या रहती है, को इस सूत्र से हल किया जा सकता है। चतुर्घातों को सरल द्विघात में तोड़ने के लिए दोनों द्विपदों के मध्य मान का उपयोग करते हैं।
vyashtisamanstih example नीचे दिया गया है।

उदाहरण :-
( X + 6)⁴ + ( X + 4)⁴ = 706
यहां ( X + 6) तथा ( X + 4) के मध्य मान
{( X + 6) + ( X + 4)} /2
= X + 5

माना कि X + 5 = p
( p + 1)⁴ + ( p – 1)⁴ = 706
2p⁴ + 12p² + 2 = 706
2p⁴ + 12p² – 704 = 0
p⁴ + 6p² – 352 = 0

p² = {- 6 ± ( 36 + 4× 1 × 352)½} / 2
= {- 6 ± (1444)½} /2
= {- 6 ± 38} / 2
= – 22, 16

p = ± (-22)½, ± 4
X = – 5, ±(-22)½, – 1, – 9 (उत्तर)

अभ्यास :-
x  के लिए हल करें :-
(1) ( x + 5)⁴ + ( x + 3)⁴ = 16
(2) ( x + 16 )⁴ + ( x + 14)⁴ = 29

सूत्र –12 Shesanyankena Charamena || शेषाण्यङ्केन चरमेण

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है  शेषाण्यङ्केन चरमेण  (Shesanyankena Charamena

अंतिम अंक से अवशेष को।
Remainder by the last digits.
साधारण भिन्न को उनके तुल्य दशमलव में बदलते समय क्रमागत पैड़ियों अवशेष तथा भजनफल के संबंध में यह सिद्धांत है कि यदि हम किसी भी अवशेष को लें और उससे चरमांक (अंतिम पद) को गुणा करें तब गुणनफल का अंतिम अंक उस पैड़ी का भजनफल अंक होता है।

Shesanyankena Charamena example नीचे दिया गया है।

यहाँ प्रयुक्त होनेवाला सूत्र है ‘शेषाण्यङ्केन चरमेण’ 1/13 के प्रकरण में 10, 9, 12, 3, 4, तथा 1 क्रमागत अवशेष हैं। 13 के चरमांक 3 से लगातार गुणा करने से हमें 30, 27, 36, 9, 12, तथा 3 गुणनफल मिलते हैं।
अतः भजनफल अंक क्रमशः 0, 7, 6, 9, 2 तथा 3
अतः 1/13 = 0. ‘076923’

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सूत्र – 13 Sopaantyadvayamantyam || सोपान्त्यद्वयमन्त्यम्

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है सोपान्त्यद्वयमन्त्यम् (Sopaantyadvayamantyam)

अंतिम और उपान्तिम का दुगुना।

Sopaantyadvayamantyam example in english – Ultimate and twice the penultimate.
एक विशिष्ट प्रकार के सरल बीजगणितीय समीकरण के सरलीकरण के प्रकरण में जिसमें हर समांतर श्रेणी में होते हैं, इसका अनुप्रयोग होगा।
w, x, y तथा z समांतर श्रेणी में है तो समीकरण —
1/wx + 1/wy = 1/wz + 1/xy
का हल इस सूत्र से 2y + z = 0

sopaantyadvayamantyam example नीचे दिया गया है।
उदाहरण :-
1 / (x + 1) (x + 2) + 1/(x + 1) (x + 3) = 1/(x + 1)(x + 4) + 1 / (x + 2) (x + 3)
का हल सूत्र सोपान्त्यद्वयमन्त्यम् से
(x + 4) + 2 (x + 3) = 0
3x + 10 = 0
x = – 10 / 3

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सूत्र – 14 Ekanyunena Purvena || एकन्यूनेन पूर्वेण

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है एकन्यूनेन पूर्वेण (Ekanyunena Purvena)

Ekanyunena Purvena in hindi  – पहले से एक कम के द्वारा।

ekanyunena purvena meaning – By one less than the previous one.

उपरोक्त सूत्र के प्रयोग द्वारा हम वैसी गुणन क्रिया कर सकते हैं जिसका एक भाग में संख्या सिर्फ़ 9, 99, 999, 9999 ,….. हो

ekanyunena purvena formula का उपयोग करके ekanyunena purvena examples को हल करें।

उदाहरण :-
2354 × 9999
( 2354 – 1) = 2353         एकन्यूनेन पूर्वेण
( 999 10 – 235 4) = 764 6
निखिलं नवतः चरमं दशतः
= 2353 7646 ( उत्तर)

अभ्यास :-
(1) 75864 × 999999
(2) (86175)² – ( 13824)²

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सूत्र – 15 Gunitasamuccayah || गुणितसमुच्चयः

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है गुणितसमुच्चयः (Gunitasamuccayah)

गुणितो का समुच्चय।

Gunakasamuccayah in english -The whole product.
गुणनखण्डों की गुणन संख्याओं के योग का गुणनफल, गुणनफल भी गुणन संख्याओं के योग के समान होता है।
gunitasamuchyah example नीचे दिया गया है।

उदाहरण :-
(2x + 1) ( 3x + 5) = 6x² + 13x + 5
( 2 + 1) ( 3 + 5) = 6 + 13 + 5
प्रत्येक पक्ष के 24  समान है
संख्याओं के योग तथा गुणन के नवांक एवं एकदशांक परीक्षण इसी सूत्र पर आधारित है।

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सूत्र – 16  Gunakasamuccayah || गुणकसमुच्चयः

शंकराचार्य जगत गुरु स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज द्वारा रचित वैदिक गणित के 16 सूत्रों तथा 13 उप सूत्रों  (16 Sutras Of Vedic Maths ) में से एक सूत्र है गुणकसमुच्चयः (Gunakasamuccayah)

गुणको का समुच्चय।
Gunakasamuccayah in english – Set of multipliers.
यदि द्विघात व्यंजक X² + aX + b दो द्विपद ( X + p) तथा (X + q) का गुणनफल है तब इसकी प्रथम अवकलन (derivative) गुणन संख्या दोनों गुणनखण्डों का योग होती है।

X² + 5X + 4 = (X + 4) ( X + 1)
अतः ( 2X + 5) = (X + 4) + ( X + 1)
अवकलन के गुणन सूत्र (product rule of derivative)
y = f(x) × g(x)
तो dy/dx = f(x)’ × g(x) + f(x) × g(x)’
जबकि y, f(x) तथा g(x) तीनों x के फलन हैं तथा y = f(x) × g(x) तथा सूत्र गुणकसमुच्चयः एक ही सत्य को अभिव्यक्त करते हैं।

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