What is Shulv Sutra

What is Shulv Sutra (शुल्वसूत्र क्या है)

ऋग्वेद एवं अथर्ववेद संहिता से संबंधित शुल्वसूत्र वर्तमान में अनुपलब्ध है। सामवेद एवं यजुर्वेद के श्रौत सूत्रों
में अंतर्निहित जो शुल्व सूत्र हैं
(1) कृष्ण यजुर्वेदीय तैत्तिरीय संहिता – बोधायन, आपस्तम्ब, हिरण्यकेशिन, तथा वाधुल शुल्वसूत्र

(2) शुक्ल यजुर्वेदीय संहिता – कात्यायन शुल्वसूत्र
(3) मैत्रायणी संहिता – मानव एवं वराह शुल्वसूत्र
(4) सामवेद संहिता – मशक
परन्तु आज केवल बौधायन (21 अध्याय, 323 श्लोक), आपस्तम्ब (21 अध्याय, 202 श्लोक), कात्यायन (6
अध्याय, 67 श्लोक) एवं मानव (16 अध्याय, 233 श्लोक) ये चार शुल्वसूत्र ही उपलब्ध है। अन्य शुल्वसूत्र केवल
संदर्भ से ही ज्ञात है। इन चारों शुल्वसूत्रों के अनेकों अनुवादक तथा व्याख्याएँ विद्यमान है। भारतीय मनीषी
विभिन्न आकृतियों की वेदियां बनाते थे तथा वस्तुकार भवनों और नगरों की संरचना हेतु रसिया डोरी का
उपयोग करते थे। आज भी राजमिस्त्री सूत या डोरी का तथा भूमि नापने वाले लेखपाल आदि कड़ी और जरीब
का उपयोग करते हैं। रस्सी को संस्कृत में रज्जू एवं शुल्व नाम से जाना जाता है।

शुल्वकाल में भवनों एवं विभिन्न वैदिक यज्ञों में उपयोगी बेदियों के निर्माण कार्य सम्पन्न करने के लिए
मुख्यतः 25 प्रकार के ईंटों को तैयार किया जाता था। त्रिभुजाकार ईंट (माप – 30, 6√13, 12√2);  हंसमुखी
ईंट (30, 15√2, 15√2, 15√2) इत्यादि का वर्णन आता है। जिससे पता चलता है कि शुल्वकाल में अपरिमेय
संख्याओं का दैनिक जीवन में व्यवहारिक प्रयोग किया जाता था। इन ईंटों की सहायता से वर्गाकार,
वृत्ताकार, महाबेदी (समलम्ब चतुर्भुजाकार), प्राग्वंश बेदी (आयताकार) इत्यादि बनाने की विधियों का वर्णन
है। इसके साथ साथ 14 प्रकार के चिति श्यनचित (वर्गाकार), कंकचित (पतंगाकार), परिमंडल, द्रोणचित
(वृत्ताकार), पुरुष आदि चिति बनाने की विधियाँ बौधायन शुल्व सूत्रों में बताई गई है। प्रत्येक चिति साढ़े
सात वर्गपुरुष नाप की होती थी।
अतः आकृतियों की गणित को रज्जूगणित, शुल्वगणित, शुल्वशास्त्र, क्षेत्रव्यवहार, क्षेत्रमिति, ज्यामिति एवं
भूमिती आदि नामों से पुकारा जाता है। इसे आज रेखागणित के नाम से पुकारा जाता है। शुल्वसूत्र काल
लम्बाई की मौलिक इकाई अंगुल है। चार अंगुल लगभग 3 इंच की माप बराबर होती है। बड़ी इकाइयाँ
क्रमशः प्रदेश, वितस्ति, पद, बाहु, पुरुष, आदि अंगुल के लम्बाई के गुणक के रुप में प्रयोग किया गया है।
भारतीय गणित के इतिहास में 5000 ई.पू. से 800 ई.पू. का काल शुल्वकाल या वेदांग ज्योतिष काल माना
जाता है। इस काल में अनेक मनीषियों ने रेखा गणित के विकास में अद्भुत योगदान किया है। इनमें बोधायन,
आपस्तम्ब, कात्यायन, मानव, नेत्रआयन वराह एवं वाधुल उनके शुल्वसूत्र आज भी उपलब्ध है।
शुल्वसूत्रों में गणित –

परिमाण, वेदि एवं चिति – शुल्वसूत्रों में विभिन्न ज्यामितीय चित्रण तथा एक प्रकार के क्षेत्र के बराबर दूसरे
प्रकार के क्षेत्र बनाने की विधियों का वर्णन सविस्तार दिया गया है।
सब प्रकार के त्रिभुज, समांतर चतुर्भुज, समलंब चतुर्भुज, वर्ग तथा समचतुर्भुज बनाने की विधियां। (बो. शु.
सू. – 1.4 से 1.7)
· दो विभिन्न वर्गों के क्षेत्रफल ओं के योग तथा अंतर के बराबर वर्ग बनाना। (बो. शु. सू. – 2.1, 2.2; आ. शु.
सू. – 2.4; का. शु. सू से 2.13)
· त्रिभुज के उसी क्षेत्रफल के आयत तथा वर्ग के परिवर्तित करता साथ ही वर्ग तथा आयत को त्रिभुज में
परिवर्तित करना। (बो. शु. सू.- 2.7; आ. शु. सू. – 2.7; का. शु. सू – 4.1, 2, 3, 5)
· दो त्रिभुजों तथा दो पंचभुजओं के बराबर क्षेत्रफल का वर्ग बनाना। (बो. शु. सू.-
· आयत के बराबर वर्ग और वर्ग के बराबर आयत बनाना। (बो. शु. सू.- 2.3, 2.5, आ. शु. सू.- 2.7, का. शु. सू
से 3.2)
· आयत तथा वर्ग के बराबर क्षेत्रफल के समलंब तथा समचतुर्भुज बनाने की विधि। (बो. शु. सू.- 2.6, 2.8; आ.
शु. सू.- 12.4, 12.8; का. शु. सू.- 3.2, 4.4)
· वर्ग के बराबर वृत्त और वृत्त के बराबर वर्ग की विधि। (बो. शु. सू. – 2.9, 2.10; आ. शु. सू. – 3.2, 3.3; का.
शु. सू – 3.11; मा. शु. सू. – 1.8)
बौधायन प्रमेय पर अन्य गणितज्ञों के कार्य भी उपलब्ध हैं। आ. शु. सू. – 1.4; का. शु. सू – 2.7; मा. शु. सू. –
10.10)
संदर्भ-ग्रंथ-सूची
(1) चार शुल्वसूत्र – डॉ. रघुनाथ कुलकर्णी, महर्षि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन
(2) भारत के प्रमुख गणिताचार्य – विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र
What is Shulv Sutra (शुल्वसूत्र क्या है)
http://www.manasganit.com/Post/details/65-what-is-shulv-sutra

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