Permutation In Ancient Maths (अंकपाश)
।। अंकपाश या क्रमचय (Permutation) ।।
Permutation – Each of the different arrangements which can be made by taking some or all of a number of things is called Permutation.
गणित के इस विधा के अन्तर्गत अंकों के विविध क्रमों अथवा उनके प्रकारों की संगणना की जाती है।
भास्कराचार्य ने कहा है कि —
न गुणो न हरो न कृतिर्न घनः पृष्टस्तथापि दुष्टानाम् ।
गर्वितगणकबटूनां स्यात् पातोsवश्यमंकपाशेsस्मिन।।
(—लीलावती, अंकपाश)
अर्थात :-
इस विधा में प्रमुखतः गुणा, भाग, वर्ग, घन आदि की किसी विधि का प्रयोग नहीं किया जाता। फिर भी गणित के अभिमानी दुष्ट बच्चों का इस विधा में अवश्य अभिमान चूर हो जाता है।
इसके बीज अति प्राचीन गणित से प्राप्त होते हैं। प्रमुखतः जैन गणितज्ञों का यह विषय था। स्थानांग सूत्र (३५० ई. पू.) में इसका “नाम भंग” बताया है। तथा भगवती सूत्र (३०० ई. पू.) में इन अंकों के विविध गुटों को एक संयोग, द्विक संयोग आदि नाम दिये गये हैं। शीलांक सूरि ने इसे “विकल्प” कहा है तथा क्रमचय(Permutation) के लिए सूत्र प्रदान किया है-
एकाद्या गच्छपर्यन्ता परस्परसमाहताः ।
राशयस्तद्धि विज्ञेयं विकल्पगणिते फलम् ।।
(अनुयोग-द्वार — 5-28 के टीका में उद्धृत)
अर्थात—
1 से लेकर गच्छ (n) तक परस्पर गुणन करने से प्राप्त राशियाँ विकल्प-गणित का फल देती है। स्पष्टतः यह क्रमचय गणना का प्रसिद्ध सूत्र है
भास्कराचार्य ने इसे इस प्रकार प्रकट किया है—
स्थानान्तमेकादिचयांकघातः संख्या विभेदा नियतैः स्युरंकैः।
( लीलावती, अंकपाश, श्लोक – 1)
अर्थात—
एक आदि अंकों का स्थान (n) पर्यंत परस्पर गुणन करने से “संख्या-विभेद” अर्थात क्रमचयों की गणना प्राप्त होती है।
इससे हमें आधुनिक गणित के लिये यह सूत्र प्राप्त होता है —
ⁿPn = n!
उदाहरण —
– विष्णु के कितने मुर्तिभेद –
अन्योन्यहस्तकलितैः कति मुर्तिभेदः शम्भोर्हरेरिव गदारिसरोजशखैः ।
हरि के समान विष्णु के 4 हाथों में गदा, चक्र, कमल और शंख को परस्पर बदल कर एक दूसरे हाथ में रखने से कुल कितने मुर्तिभेद बनते हैं ?
(—लीलावती, अंकपाश, उदाहरण – 1)
सूत्र का प्रयोग करते हुए इसका भेद प्राप्त करना आसान है—
4! = 1 × 2 × 3 × 4 = 24
इस क्रम में विष्णु के इन 4 अस्त्रों को 6 – 6 क्रम में कुल 4 प्रकार से रखा जा सकता है। अस्त्रों को a, b, c, d नाम देते हुए इन्हें इस रीति से प्रकट करते हैं—
प्रथम प्रकार :- {a, b, c, d } {a, b, d, c }
{a, c, b, d } {a, c, d, b }
{a, d, b, c } {a, d, c, b }
द्वितीय प्रकार :- {b, a, c, d } {b, a, d, c }
{b, c, a, d } {b, c, d, a }
{b, d, a, c } {b, d, c, a }
तृतीय प्रकार :- {c, a, b, d } {c, a d, b }
{c, b, a, d } {c, b, d, a, }
{c, d, a, b } {c, d, b, a }
चतुर्थ प्रकार :- {d, a, b, c } {d, a, c, b }
{d, b, a, c } {d, b, c, a }
{d, c, a, b } {d, c, b, a }
यहाँ 6-6 के क्रम को 4 प्रकार से प्रकट किया गया है। अतः स्पष्टतः 4 × 6 = 24 प्रकार सिद्ध होते हैं। 6 का गुणनखण्ड 1 × 2 × 3 है। अतः इसे इस प्रकार लिख सकते हैं—
1 × 2 × 3 × 4 = 24
इस प्रकार पुनः सूत्र का आकार प्राप्त कर लिया गया है। विविध परिस्थितियों में क्रमचयों की संख्या अलग अलग हो सकती है। यह देखा जा सकता है कि कुछ निश्चित वस्तुओं ( n) को विविध खाली स्थानों ( r) में कितने प्रकार से तथा कितने क्रम में भरा जा सकता है। पूर्वोक्त चार्ट में 4 वस्तुओं को 4 – 4 स्थानों में 6 – 6 क्रम में 4 प्रकार से भरा गया है। इन्हें अलग अलग स्थानों में भरने पर अलग अलग परिणाम प्राप्त होते हैं।
उदाहरणतः 4 वस्तुओं को क्रमशः 1 – 1 स्थानों में भरने पर—
a, b, c, d कुल क्रमचय = 4
अतः ⁴P¹ = 4, सूत्र ~ ⁿP¹ = n
4 वस्तुओं को 2 – 2 स्थानों में भरने पर—
ab, ac, ad, ba, ca, da, bc, bd, cb, db, cd, dc, = कुल 12
अतः ⁴P² =12, सूत्र ~ ⁿP²= n × (n -1) अतः 4 × 3 = 12
इसी तरह 4 वस्तुओं को 3 – 3 स्थानों में भरने पर—
⁴P³ = 24, सूत्र ~ ⁿP³ = n × (n-1) × (n-2)
प्रस्तुत उदाहरण — 4 × 3 × 2 = 24
4 वस्तुओं को 4 स्थानों में भरने के लिए सूत्र
ⁿP⁴ = n × (n-1) × (n-2) × ( n-3)
⁴P⁴ = 4 × 3 × 2 × 1 = 24
इससे यह देखा जा सकता है कि जितने खाली स्थान (r) होते हैं उतने कुल क्रमचयों के गुणनखण्ड प्राप्त होते हैं। अतः इसका व्यापक सूत्र—
ⁿPr = n × (n-1)× (n-2) × (n-3)…….. × r
ⁿPr = n! / (n – r)!
लीलावती में संख्याओं के क्रमचय से जितने प्रकार प्राप्त होते हैं, उनके योग के नियम भी बतायें है।
नियम इस प्रकार है—
भक्तोsङ्कसमासनिघ्नः स्थानेषु युक्तो मितिसंयुतिः स्यात् ।
(—लीलावती, अंकपाश, श्लोक – 1)
अर्थात—
क्रमचय वाले अंको के योग को ‘संख्याविभेद’ या अंकों का गुणनफल से गुणित करे। पुनः स्थानांक से भाग देकर भागफल को क्रमशः एक एक संख्या बढ़ाकर लिख कर योग करने से सभी संख्या भेद ज्ञात होते हैं।
उदाहरणतः 3 अंकों से बनने वाली 3 9 8 के निम्न 6 क्रमचय तथा उनका योग इस प्रकार होगा—
कुल 6 क्रमचयों का योग
= 398 + 389 + 938 + 983 + 839 + 893
= 4440
लीलावती के अनुसार इन संक्रयाअों का योग प्राप्त करते हैं—
एक आदि अंकों का गुणनफल (n) = 1× 2×3 = 6 (संख्याविभेद)
क्रमचय वाले अंकों का योग = 3 + 9 + 8 = 20
योगफल का गुणनफल से गुणन = 20 × 6 = 120
गुणनफल को प्रत्येक स्थानों पर कुल अंकों (n) से भाग = 120 ÷ 3 = 40
एक-एक स्थान बढ़ाकर लिखकर योग =
40
40
+ 40
————–
4440 — क्रमचय से प्राप्त सभी संख्याओं का योग
इसकी उपपत्ति के लिए इस हल को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं—
(i) क्रमचयों की संख्या 1 × 2 × 3 = 6
(ii) अंकों (n) की संख्या = 3
(iii) 3 स्थानों में 3 अंक 6 बार उपलब्ध है। अतः एक-एक स्थान में इन अंकों की उपलब्धता = 6 ÷ 3 = 2
(iv) क्रमचय वाले अंकों का कुल मूल्य = 3 + 9 + 8 = 20
(v) प्रत्येक स्थान पर यह मूल्य 2-2 बार उपलब्ध है। अतः प्रत्येक स्थान का मान तथा उसके द्विगुणित मूल्य —
40 = 2 × 20 × 100 = 4000
40 = 2 × 20 × 10 = 400
40 = 2 × 20 × 1 = 40
– – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – – –
कुल मूल्य = 4440
=> 2 × 20 × ( 100 + 10 + 1) = 4440
इस प्रकार हमें प्राचीन पद्धति के अनुसार यह सूत्र प्राप्त होता है—
(अंक = n, अंकों का योग = d)
क्रमचय से प्राप्त संख्याओं का योग—
n! / n ( d + 10 d + 100 d + – – – – + 10ⁿ-¹ d)
(n! / n) × अंकों का योग (10ⁿ-¹ + – – – + 10 + 1)
इससे आधुनिक गणित के लिए यह सूत्र प्राप्त होता है—
{(n-1)! (10ⁿ – 1) ( सभी अंगों का योग)}/ 9
उपरोक्त उदाहरण में = (2 × 999 × 20) ÷ 9 = 4440
अभ्यास ( Exercise) :-
(1) x का मान ज्ञात किजिए जबकि –
(i) 1/4! + 1/5! = x/6!
(ii) x/10! = 1/8! + 1/9!
(iii) 1/6! + 1/7! = x/8!
(2)
(i) 3!, 4!, 7! का लघुत्तम समापवर्त्य ( LCM) निकालिए ।
(ii) 6!, 8!, 11! का महत्तम समापवर्तक (HCF) निकालिए ।
(3) यदि (n+2)! = 60 ( n-1)! तो n का मान ज्ञात किजिए।
(4) यदि P ( n, 4) = 20 P ( n, 2) तो n का मान ज्ञात किजिए।
(5) 1 से 9 तक की संख्याओं का उपयोग कर 3 अंकों वाली कितनी संख्याएँ बनाइ जा सकती है जिसमें किसी संख्या की पुनरावृत्ति न हो?
(How many 3-digits numbers can be formed by using the digits 1 to 9 if no digit is repeated ?)
Permutation In Ancient Maths (अंकपाश)
http://www.manasganit.com/Post/details/27-permutation-in-ancient-maths