वर्ग की सर्वसमिका (Identity of Square
Sankalanvyabkalanabhyam)
हमारे वैदिक संस्कृति की दिव्यता के वर्णन में गणित की बीजगणितीय शाखा के एक सर्वसमिका (Identity)
की चर्चा करेंगे जो हमारे प्राचीन गणितीय ज्ञान को न सिर्फ प्रमाणित करेगा बल्कि गणित को सरल तथा
रोचक बनाने में मदद करेगा।
—श्रीधराचार्य ने की एक विधि के अन्तर्गत एक अन्य प्रसिद्ध सर्वसमिका प्रकट की है।
इष्टोनयुतवधो वा तदिष्ट-वर्गान्वितो वर्गाः।
( —त्रिशतिका, श्लोक – 11)
अर्थात :-
जिस संख्या का वर्ग करना है, उसमें किसी इष्ट संख्या को घटावें तथा उसमें उसी को जोड़े। पुनः घटाई गई
तथा जोड़ी गई संख्या का आपस में गुणन करें तथा तथा इस गुणनफल में इष्ट संख्या को जोड़ने से उस संख्या
का वर्ग प्राप्त होता है।
—भास्कराचार्य द्वारा
इष्टोनयुग्राशिवधः कृतिः स्यादिष्टस्य वर्गेण समन्वितो वा।
( —लीलावती, अभिन्नपरिकर्माष्टक, श्लोक – 9)
अर्थात :-
वर्ग करने योग्य संख्या से किसी कल्पित संख्या को एक जगह जोड़कर तथा दूसरी जगह घटाकर उन दोनों
योगान्तरों के गुणनफल में उस कल्पित संख्या का वर्ग जोड़ देने से उस आलोच्य संख्या का वर्ग प्राप्त होता है।
—प्राचीन गणित का प्रसिद्ध कथन
वरगान्तरं तु योगान्तरघातसमो भवन्ति।
अर्थात :-
किन्हीं दो वर्ग संख्याओं का अन्तर उन्ही संख्याओं के योग तथा अन्तर के फलों के गुणन के समतुल्य होता है।
इस नियम को गणित की भाषा में इस प्रकार लिखते हैं —
a² = ( a + b) × ( a – b) + b²
उदाहरण (Example) :-
( 67) ² = ( 67 + 3) × ( 67 – 3) + 3 ²
= 70 × 64 + 9
= 4489 ( उत्तर)
इस सूत्र पर समीकरण के नियम का उपयोग करते हुए हम यह सर्वसमिका ( Identity) प्राप्त करते हैं —
a ² — b ² = ( a + b) ( a + b)
उपरोक्त सूत्र का प्रयोग गणित के विभिन्न अध्याय में होता है जो कि विषय को सरलता तथा मनोरंजक तरीके
से हल करने के लिए आवश्यक है।
अभ्यास (Exercise) :-
(1) (67) ²
(2) 43 × 37
(3) 66 × 54
(4) 35 ² – 14 ²
(5) 69 ² – 49 ²
(6) ( 76321)² – ( 23678) ²
वर्ग की सर्वसमिका (Identity of Square Sankalanvyabkalanabhyam)
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