वैदिक गणित का भव्य अनुप्रयोग (Glorious
Application of Vedic Ganit)
साधारण भिन्न को उसके समतुल्य दाशमलविक रुप में प्रकट करना।
एक ऐसा भिन्न लेना है जैसे 1/19 जिसके हर का अन्तिम अंक 9 है।
यदि हम 1 /19 को दशमलव भिन्न में बदलने की प्रक्रिया शुरू करें तो सामान्य अथवा
प्रचलित विधि के अनुसार 1 को 19 से भाग (1 ÷ 19) देने की आवश्यकता होगी साथ ही
हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि यह भिन्न का दाशमलविक स्वरूप 18 दशमलव स्थान के
बाद ही पुनरावृत्ति करेगा। अतः हमे 18 अंको तक लगातार विभाजन की क्रिया करनी होगी
जिसमें दुखद 19 का पहाड़ा तथा लम्बी विभाजन प्रक्रिया से गुजरना पडे़गा जिसमें अत्यधिक
समय तथा कागज की बर्बादी होगी।
सामान्य या भाग विधि द्वारा 18 अंको तक मान निम्न प्रकार है :-
1/19 = 0.052631578947368421
उपरोक्त 1/19 का दाशमलविक 18 अंकों तक के मान को वैदिक विधि से समझने का प्रयास
करेंगे जो कि अत्यंत सरल रोचक तथा बिना अत्यधिक समय खर्च किया हल किया जा सकता
सकता है।
वैदिक विधि से इस मान को प्राप्त करने के दो विधियाँ हैं —
प्रथम – गुणन विधि
द्वितीय – विभाजन विधि
सूत्र :- एकाधिकेन पूर्वेण (Ekadhikena purvena)
पहले से एक अधिक के द्वारा (One more than the previous one)
इस विधि में हर का अन्तिम अंक 9 है और उसके पहले वाला अंक 1 है अतः सर्वप्रथम पहले
वाले अंक से एक अधिक एक अधिक (सूत्र एकाधिकेन पूर्वेण) का अर्थ 2 हुआ।
सूत्र के अनुसार 'के द्वारा' यह दर्शाता है कि उपरोक्त दोनों वैदिक विधियाँ या तो गुणन
प्रक्रिया है अथवा विभाजन प्रक्रिया जिसमें जोड़ या घटाने में क्रमशः 'को' अथवा 'से'
संबंधसूचक शब्द ज्ञात होता है।
प्रथम – गुणन विधि
इस विधि के अनुसार 2 के द्वारा (जोकि "एकाधिकेन पूर्वेण" अर्थात् पहले से एक अधिक है)
गुणन करते हैं। यहाँ, हमे यह पहले से ही मालूम है कि उत्तर का अंतिम अंक 1 ही होगा।
संबद्ध नियम यह कहता है कि "हर" के अंतिम अंक तथा प्रश्नगत भिन्न के तुल्य दाशमलविक
संख्या के अंतिम अंक का गुणनफल 9 ही होना चाहिए। अतः हर के अंतिम अंक का मान 9
होने के कारण, तुल्य दाशमलविक संख्या का अंतिम अंक 1 ही होगा।
अतः 1 को उत्तर का अंतिम अंक (दाहिने ओर से) मानकर , 2 (एकाधिकेन पूर्वेण से प्राप्त
संख्या) को प्रचालक मानकर उससे लगातार गुण करते हुए बाईं ओर तबतक बढ़ते जायेंगे
जब तक सारी प्रक्रिया दुहराने न लगे और यह स्पष्ट रुप से न दिख जाए कि उत्तर में आवर्ती
दाशमलविक संख्या आ रही है और तब गुणन कार्य बंद कर देंगे।
कार्य पद्धति :-
(1) हम 1 को उत्तर के दाहिने छोर पर लिख लेते हैं
1
(2) हम इस अंतिम अंक को 2 से गुणा करते हैं (1× 2 = 2) और 2 को पूर्ववर्ती अंक
बना कर 1 के बाईं तरफ़ लिखते हैं।
2 1
(3) इस 2 को पुनः 2 से गुणा कर, 4 को फिर बाईं तरफ लिख देते हैं।
4 2 1
(4) इस 4 को फिर 2 से गुणा कर, 8 को 4 के बाईं तरफ लिखते हैं।
8 4 2 1
(5) इस 8 को यदि हम 2 से गुणा करते हैं तो गुणनफल 16 मिलता है। परन्तु इसमें दो
अंक है। इसलिए 6 को 8 के तुरंत बाईं ओर लिखते हैं और 1 को अगली पैड़ी में बाईं ओर
जोड़ने के लिए हाथ में रख लेते हैं।
6 8 4 2 1
(6) अब हम 6 को 2 से गुणा करते हैं और गुणनफल 12 में 1 (जो पिछली पैड़ी से
जोड़ने के लिए हाथ में रखा था) जोड़ते हैं इस प्रकार प्राप्त 13 का 3 संख्या 6 के बाईं ओर
लिखकर, फिर 1 को अगली पैड़ी में जोड़ने के लिए हाथ में रख लेते हैं।
3 6 8 4 2 1
(7) अब 3 को 2 से गुणा करते हैं, और गुणनफल 6 में हाथ वाला 1 जोड़ने पर फल 7
प्राप्त होता है। इस समय यह एक अंकीय संख्या है इसलिए इसे ज्यों का त्यों 3 के बाईं तरफ
लिख देते हैं।
7 3 6 8 4 2 1
(8) अब हम 7 को 2 से गुणा करते हैं और गुणनफल 14 इस प्रकार प्राप्त 14 का 4
संख्या 7 के बाईं ओर लिखकर, फिर 1 को अगली पैड़ी में जोड़ने के लिए हाथ में रख लेते
हैं।
4 7 3 6 8 4 2 1
(9) अब 4 को 2 से गुणा करते हैं, और गुणनफल 8 में हाथ वाला 1 जोड़ने पर फल 9
प्राप्त होता है। इस समय यह एक अंकीय संख्या है इसलिए इसे ज्यों का त्यों 4 के बाईं
तरफ लिख देते हैं।
9 4 7 3 6 8 4 2 1
(10) इस प्रणाली को दुहराते हुए अठारहवें अंक (दांये से बांये तरफ़ गिनते हुए) तक
पहुंचते हैं जब हम देखते हैं कि सारा दाशमलविक दुहराने लगा है। तब प्रथम तथा अंतिम
अंक में आवर्ती बिन्दु लगा देते हैं और गुणन क्रिया रोक देते हैं।
इस प्रक्रिया से हमे निम्नलिखित संख्या प्राप्त होती है —
1/19 = 0.052631578947368421
इस तरह हम देखते हैं कि हमारी वैदिक विधि एक पंक्ति विधि द्वारा प्राप्त (जो कि आप
बिना काग़ज़-कलम के भी मन में ही कर सकते हैं) उत्तर, प्रचलित विभाजन विधि द्वारा
(जिसमें भाग क्रिया की अठारह पैड़ी है) प्राप्त उत्तर के बिल्कुल समान है।
द्वितीय – विभाजन विधि
इस प्रक्रिया में अंश का 1 में हर के 1 के एकाधिकेन 2 से भाग की क्रिया करेंगे चूंकि
विभाजन क्रिया गुणन क्रिया के ठीक विलोम है, अतः यह प्रक्रिया दाहिने ओर से न शुरू
होकर उसके विरुद्ध दिशा से अर्थात् बांई ओर से शुरू करेंगे।
कार्य पद्धति :-
(1) भिन्न 1/19 के अंश 1 को 19 में 9 का पुर्ववर्ति अंक 1 का एकाधिकेन 2 से भाग
(1 ÷ 2) देते हुए, हम देखते हैं कि भजनफल शून्य है तथा शेष 1 है। इसलिए हम
भजनफल के प्रथम अंक को शून्य रखते हैं और अगला भाज्य निकालने के लिए शेष 1 को
भजनफल के उसी अंक में पूर्व स्थापित कर देते हैं (गुणन क्रिया में प्रयुक्त बाईं तरफ जाने
वाली क्रिया की विपरीत क्रिया के समान) और इस तरह भाज्य 10 हो जाता है।
0.0
(2) इस 10 में 2 से भाग देने पर हमें भागफल का दूसरा अंक 5 मिलता है, चुँकि इस
कुछ भी शेष नहीं रहता (जिसे हम भजनफल के पूर्व स्थापित करते), हम उस अंक 5 को
ही अपना अगला भाज्य अंक मान लेते हैं।
0.0 5
(3) 2 से 5 को भाग करने पर भागफल का अगला अंक 2 मिलता है तथा शेष 1 बचता
है। इसलिए 2 को भजनफल का तीसरा अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 2 के पूर्व
स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 12 हो जाता है।
0.0 5 2
(4) इस 12 में 2 से भाग देने पर हमें भागफल का चौथा अंक 6 मिलता है, चुँकि इस
कुछ भी शेष नहीं रहता (जिसे हम भजनफल के पूर्व स्थापित करते), हम उस अंक 6 को
ही अपना अगला भाज्य अंक मान लेते हैं।
0.0 5 2 6
(5) पुनः 6 में 2 से भाग देने पर हमें भागफल का पांचवां अंक 3 मिलता है, चुँकि इस
कुछ भी शेष नहीं रहता (जिसे हम भजनफल के पूर्व स्थापित करते), हम उस अंक 3 को
ही अपना अगला भाज्य अंक मान लेते हैं।
0.0 5 2 6 3
(6) 3 को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 1 मिलता है तथा शेष 1 बचता
है। इसलिए 1 को भजनफल का छठा अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 1 के पूर्व स्थापित
कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 11 हो जाता है।
0.0 5 2 6 3 1
(7) अब 11 को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 5 मिलता है तथा शेष 1
बचता है। इसलिए 5 को भजनफल का सातवां अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 5 के पूर्व
स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 15 हो जाता है।
0.0 5 2 6 3 1
5
(8) अब 15 को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 7 मिलता है तथा शेष 1
बचता है। इसलिए 7 को भजनफल का आठवां अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 7 के पूर्व
स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 17 हो जाता है।
0.0 5 2 6 3 1 5
7
(9) अब 17 को 2 से भाग करने पर भागफल का अगला अंक 8 मिलता है तथा शेष 1
बचता है। इसलिए 8 को भागफल का नवमा अंक लिख देते हैं और उसमें 1 को 8 के पूर्व
स्थापित कर देते हैं, इस तरह अगला भाज्य 18 हो जाता है।
0.0 5 2 6 3 1 5 7 8
(10) इसी प्रकार 2 से भाग देने वाली प्रक्रिया को इस तरह करते हुए हम 17वां भजनफल
अंक 2 मिलेगा और शेष शून्य।
0.05263157894736842
(11) इस तरह भाज्य अंक 2 को 2 से पुनः भाग देने पर 1 भागफल और शेष शून्य आता
है। परन्तु इसी अंक 1 से हमने शुरू किया था। अर्थात् इस अंक के बाद दशमलव संख्या की
पुनरावृत्ति होने लगती है। इसलिए मौखिक रूप कर रहे इस भाग क्रिया को हम रोक देते हैं
और पहले तथा अठारहवें अंक के उपर आवर्ती बिन्दु लगा देते हैं जो यह दर्शाते हैं कि यह
पूरी संख्या आवर्ती है।
0.052631578947368421
अर्थात्
1/19 = 0.052631578947368421
तृतीय विधि :-
उपरोक्त विधि में जो 18 अंकों तक जो गणना बताई गई है यह भी संक्षिप्त कर सकते हैं।
सर्वप्रथम हम 1/19 के सभी भागफल के प्रथम 9 अंकों को आड़ी पंक्ति में लिखें तथा बाद के
9 अंकों को दूसरी आड़ी पंक्ति में प्रथम पंक्ति के ठीक नीचे लिखें फिर देखें —
0 5 2 6 3 1 5 7 8
9 4 7 3 6 8 4 2 1
– – – – – – – – – – – – – – – – – – –
9 9 9 9 9 9 9 9 9
यहां हम देखते हैं कि एक अंक उपर का तथा एक अंक नीचे का योग करने पर योगफल 9
आता है इसी तरह सभी अंकों का योगफल 9 आता है। इस संक्रिया से हम इस निष्कर्ष पर
पहुंचते हैं कि जब भागफल में आधा काम हो जाए तो वैदिक गणित के एक सूत्र निखिलम्
नवतः से शेष आधा भागफल प्राप्त कर सकते हैं। यह विधि हमारे पहले के मेहनत को और
आधा कर दिया।
अब हमें यह सोचना है कि हमें किस प्रकार पता चलेगा कि आधा अंकों की संख्या कितनी
होगी, इसके लिए हम सर्वप्रथम दिए गए भिन्न में अंश के अंक तथा हर के अंक का (19 –
1 = 18) का अंतर करेंगे तथा उसे पुनः 2 से विभाजित (18 ÷ 2 = 9) करेंगे।
अभ्यास
(1) 2/19
(2) 1/29
(3) 1/39
(4) 1/49
(5) 1/59
वैदिक गणित का भव्य अनुप्रयोग (Glorious Application of Vedic Ganit)
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