Binomial Theorem Meru Prastar

Binomial Theorem Meru Prastar (द्विपद प्रमेय मेरु प्रस्तार) 

 

द्विपद प्रमेय (Binomial Theorem)  मेरु प्रस्तार (Meru Prastra

 मेरु-प्रस्तार Pascal’s Triangle 

हम अपने बच्चों को पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित होते देख रहे हैं परन्तु पश्चात् सभ्यता का आधार आपकी वैदिक संस्कृति तथा आपके प्राचीन ऋषि-मुनियों के ज्ञान ही हैं। आपको आपके प्रचीन धरोहर से दूर किया गया तथा आप ही के ज्ञान को भाषा तथा अन्दाज़ बदल कर आपके सम्मुख पड़ोसा गया।

( a + b), ( a + b)² , ( a + b)³, – – – -, ( a + b)ⁿ

के मान को सुगमता से प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम ई. पू. दूसरी शती में विरचित पिंगल छन्द में छन्दों के विभेद को वर्णित करने वाला मेरु-प्रस्तार के वर्णन मिलता है।

तत्पश्चात वराहमिहिर” द्वारा त्रि-लोश्टका प्रस्तार  के नाम से उनकी रचना  बृहत संहिता – 22″ जो कि सन् –  488 ई. से 587 ई. के मध्य रचि गइ में मिलता है।

पुनः श्रीधराचार्य ने पाटी-गणित में वर्णन किया है –

श्रीधराचार्य —
कटुतिक्तकषायाम्ललवणमधुरैः सखै रसैः षड्भिः ।
विदधाति सूपकारो व्यञ्जनमाचक्ष्व कति भेदम् ।।
           (—पाटी गणित, उदाहरण, श्लोक – 95)
अर्थात –
हे मित्र, कटु, तिक्त, कषाय, अम्ल, लवण, तथा मधुर इन छः रसों को 1, 2, 3 आदि के मेल से रसोइया क्रमशः कितने प्रकार का व्यंजन बना सकता है, बताओ ?

भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने अपने ग्रन्थ सिद्धांत-सिरोमणी के लीलावती खण्ड में विवरण किया है –

भास्कराचार्य —
प्रस्तारे मित्र गायत्र्याः स्युः पादे व्यक्तयः कति ।
एकादिगुरवश्र्चाशु कति कत्युच्यतां पृथक।।
          (-लीलावती, मिश्रक-व्यवहार, श्लोक उदा. – १)
अर्थात –
हे मित्र! गायत्री के प्रत्येक चरण में गुरु, लघु की अलग अलग संख्याओं को रखने पर कुल कितने विभेद होंगे। साथ ही उन स्थानों में गुरु की अलग अलग संख्याओं द्वारा अलग अलग कितने विभेद होंगे ?

यह उदाहरण पूर्वोक्त छः रसों वाले संचय के उदाहरण के समतुल्य है। अन्तर केवल यह है कि पूर्वोक्त में कटु, तिक्त आदि 6 रसों को 1,2,3 आदि स्थानों में रखते हुए ‘ भेद-संख्या’  प्राप्त करना है। वहाँ रसों की संख्या नियत तथा स्थान-संख्या अनियत होने से रस n तथा स्थान r हैं।

मेरु-प्रस्तार / त्रि-लोश्टका प्रस्तार –
(a+b)° =                  1                       = 2° = 1
(a+b) ¹ =              1        1                 = 2¹  = 2
(a+b) ² =         1      2         1            = 2² = 4
(a+b)³ =       1      3       3       1        = 2³ = 8
(a+b)⁴  =  1     4       6      4       1    = 2⁴ = 16
–  –   –  –  =  –  –  –  –  –  –  –  –  –  –  –  –  –   = – – –
–  –  –  –   =   –  –  –  –  –  –  –  –   –  –  –       = – – –
(a + b)ⁿ =   –    –     –     –     –     –        = 2ⁿ

मेरु-प्रस्तार की कुछ गणितीय विशेषताएँ इस प्रकार है—
(१)  इस प्रस्तार की प्रत्येक संख्या अपने से ठीक उपर वाली दाईं, बाईं संख्या का योग होती है।

(२) इस प्रस्तार से प्रकट है कि संचय के विभेदों का योग 2 का n वाँ घात बनता है। यदि इस 2 संख्या को द्विपद के रुप में व्यक्त किया जाए तो इसकी प्रत्येक घात का प्रसार (expansion) प्रस्तार के क्रम से प्राप्त होता है। जैसे —
( 1 + 1)² = 1² + 2 × 1 × 1 + 1²  = 1 + 2 + 1
( 1 + 1)³ = 1³ + 3 × 1² × 1 + 3 × 1 × 1² + 1³
=  1 + 3 + 3 + 1 इत्यादि

(३) चर संख्या वाले द्विपद के किसी घात के गुणनफल में प्रस्तार की संख्याएँ उनका गुणक (coefficient) सिद्ध होती है। जैसे —
( a + b)⁴ = a⁴ + 4 a³ b + 6 a² b² + 4 a b ³ + b⁴
यहाँ गुणक, प्रस्तार के अनुसार – 1, 4, 6, 4, 1
स्पष्टतः यह मेरु-प्रस्तार द्विपद के घात के सूत्र ( Binomial Theorem) को प्राप्त करने में सहायक है।

(४) सर्वप्रथम आर्यभट्ट ने 1 से क्रमिक संख्याओं के योग के वर्ग ( a + b + c + – – – + n)² के सूत्र के लिए C (n 2) के नियम का उपयोग किया।

( a + b + c + – – – + n)² =
2 × { n! / 2 × ( n – 2)! नियत से प्राप्त युग्मों के गुणनफल का योग + ( a² + b² + c² + – – – + n²)}
इस प्रकार —
( 1 + 2 + 3 + 4)² = 2 ( 1× 2 + 1 × 3 + 1 × 4 + 2×3 + 2 × 4 + 3 × 4)  + 1² + 2² + 3² + 4²
यहाँ कोष्ठक के अन्तर्गत C (4,2) के लिए उक्त नियमानुसार (4×3) ÷ 2 = 6 युग्म प्राप्त किए गए हैं।
इस प्रकार —
= 2 × 35 × 30
= 100

भास्कराचार्य (द्वितीय)”( 1114 ई. 1193 ई.) ने अपने प्रसिद्ध पुस्तक ”  सिद्धांत-सिरोमणि ” में  ” मेरु-प्रस्तार ” के नाम से वर्णित किया है।

गणितीय विवरण (Mathematical Explanation) :-
(a + b)ⁿ = C (n, 0) aⁿ b° + C ( n , 1) aⁿ-¹ b¹ + C (n , 2) aⁿ-² b² + –  –  –  – +  C (n, n) a°bⁿ

उदाहरण (Example) :-

प्रथम (first) :-
( 103)⁴ =  ( 100 + 3)⁴
=  1 × (100)⁴ × 3° + 4 × ( 100)³ × 3 + 6 × ( 100)² × 3² + 4 × 100 × 3³ + 1 × 3⁴
= 100000000 + 12000000 + 540000 + 10800 + 81
= 112550881 (उत्तर)

द्वितीय (second) :-
( 103)⁴  = ( 1 + 03)⁴
= 1 × 1⁴ × 3° / 4 × 1³ × 3 / 6 ×1² × 3² / 4 × 1 × 3³ / 1 × 3⁴
= 1 / 12 / 54 / 108 / 81
= 112550881 (उत्तर)

अभ्यास (Exercise)
(1)
द्विपद प्रमेय ( Binomial Theorem) के प्रयोग से हल करें —
(i) ( 96) ³    ( ii)  (102)⁴    (iii) ( 101)ⁿ
(iv) ( 98)ⁿ (v) ( 10.1)ⁿ
जहाँ (where) n = 5, 6 है
(2)
द्विपद प्रमेय ( Binomial Theorem) के प्रयोग से हल करें —
(i) ( 2x + 3y)⁴   ( ii)  ( 2x – 3y)ⁿ
( ii)  ( 1 – 3x)⁴    ( iv) ( 1 + 2x – 3x²)ⁿ
जहाँ (Where) n = 5, 6 है
(3) ( a + b)⁴ – ( a – b)⁴ का मान निकालिए तथा ( 3ⁿ + 2ⁿ)⁴ – ( 3ⁿ – 2ⁿ)⁴ को हल किजिए।
जहाँ (where) n = ½
(4) C² (n, 0) + C² (n, 1) + C² (n, 2 ) + – – – + C² (n, n ) का मान ज्ञात किजिए। ( Find the value.)
(5) यदि ( 2 + a)ⁿ के प्रस्तार में सत्रहवां तथा अट्ठारहवां पद समान हो तो a का मान ज्ञात किजिए।
( Find a, if 17 th and 18 th terms of the expansions of ( 2 + a)ⁿ are equal.)
{ जहां ( when) n = 50}
– –  – × – – –
आपको यह जानकर  आश्चर्य तथा खेद होगा कि इसी सिद्धांत को यूरोपीय गणितज्ञ B. Pascal  (1623 ई. से 1662 ई.) ने Pascal’s Triangle के नाम से तथा सर आइजक न्यूटन ( 1642 ई. से 1727 ई.) ने अपनी पुस्तक Principles of Mathematica में प्रतिपादित करा लिया।

Binomial Theorem Meru Prastra (द्विपद प्रमेय मेरु प्रस्तार) 

http://www.manasganit.com/Post/details/31-binomial-theorem-meru-prastra

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