Area of Trapezium

Area of Trapezium (समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल)

शुल्ब सूत्रों में चतुर्भुज के अन्य प्रकार के रुप में ‘एकतोऽणिमत् चतुरस्त्र’ का उल्लेख किया है। यह समलम्ब चतुर्भुज (trapezium) है । इस चतुर्भुज की सम्मुख भुजाओं के समानतर होने के साथ-साथ इनमें से एक की लम्बाई अन्य की अपेक्षा छोटी होती है। अतः इसका एकतोऽणिमत् नाम सार्थक है।

चतुरस्त्रमेकतोऽणिमच्चिकीर्षन् करणीं तिर्यङमानीं कृत्वा शेषमक्ष्णया विभज्य विपर्यस्येतरत्रोपदध्यात् ।
(बौद्धायन शुल्ब सूत्र – 1. 2. 55)
अर्थात् —
वर्ग या आयत का एकतोऽणिमत् (trapezium) बनाने के लिए उसकी तिर्यङमानी या आसन्न भुजा के समीप करणी या एक अन्य भुजा बना कर उसके मध्यवर्ती स्थान को अक्षन या विकर्ण से विभाजित करके एक भाग को उलट कर दुसरी भुजा के साथ जोड़ देवे।
महान् गणितज्ञ आर्यभट्ट ने सर्वप्रथम समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल (Area of Trapezium) का सूत्र स्पष्ट शब्दों में अंकित किया है, जो आधुनिक गणित में उसी रुप में प्रचलित है। उनका श्लोक इस प्रकार है —

आयामगुणे पार्श्वे तद्योगहृते स्वपातरेखे ते।
विस्तारयोगार्धगुणे क्षेत्रफलमायामे।।

  (आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक – 8)
अर्थात् —
पार्श्व या समानांतर भुजाएं (Parallel sides) आयाम या लम्ब (Perpendicular) से गुणित हो तथा उन भुजाओं के योग से विभाजित हो तो उनकी अपनी अपनी पातरेखा या लम्ब का प्रमाण ज्ञात होता है। साथ ही विस्तार या चौड़ाई वाली उन भुजाओं के योग के आधे आयाम या लम्ब से गुणित करने पर उसका क्षेत्रफल प्राप्त होता है।
उपरोक्त श्लोक के अनुसार समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल का सूत्र है —
समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल
= ½ × ( समानान्तर भुजाओं का योग) × पातरेखा (लम्ब)
उदाहरण (Example):-
उस समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल ज्ञात किजिये जिसके समानांतर भुजाएं 8 से. मी. तथा 10 से. मी. ऊँचाई 12 से. मी. है।
हल :-
समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = ½ × (8 + 10) × 12
= 108 वर्ग से. मी.
श्रीधराचार्य ने आर्यभट्ट से प्रेरणा प्राप्त करके उसी प्रकार का सूत्र प्रदान किया है। उनका श्लोक इस प्रकार है —

चतुरस्त्रेष्वन्येषु च लम्बगुणं कुमुखयोगार्धम् ।
(त्रिशतिका, श्लोक – 42)
अर्थात् —
अन्य चतुष्कोणीय चतुर्भुज अर्थात् समलम्ब चतुर्भुज में समलम्ब के आधार वाली कु तथा मुख नामक दोनों सम्मुख भुजाओं के योग के आधे को शीर्ष लम्ब से गुणित करने पर उनका क्षेत्रफल प्राप्त होता है

ऋजुवदनचतुर्बाहौ मुखोनभूमिर्धरा भवेत् त्र्यस्त्रे ।
(त्रिशतिका, श्लोक – 49)
अर्थात् —
इसकी उपपत्ती के प्रसंग में इस चतुर्भुज को ‘ऋजु-वदन-बाहु’ अर्थात् सम्मुख भुजा से समानांतर भुजा वाला चतुर्भुज नाम दिया गया है।
श्रीधराचार्य ने समलम्ब चतुर्भुज की रेखा गणितीय आकृति द्वारा श्रेढ़ी-व्यवहार से सम्बन्धित एक सूत्र की उपपत्ती प्रदान की है। उस प्रसंग में यह माना गया है कि एक निश्चित संख्या (a) से प्रारंभ हो कर किसी समान या स्थिर अंतर (c.d.) के द्वारा वृद्धि करते हुए अंतिम दिन (n) एक निश्चित बढ़ी हुई संख्या (l) प्राप्त होती है। यदि ये परिस्थितियां ज्ञात हो तो प्रारम्भ से अंतिम दिन तक की संख्याओं की संख्या के योग का सूत्र यह होगा —
समानांतर श्रेणी का सर्वधन (Sum of A.P.)
= ½×n (a+l)

उदाहरण (Example) :-

प्रथमेऽह्नि हरीतक्या दीयेताश्वस्य विंशतिर्यस्य ।
पञ्चकचयेन दत्ताः कति ता दिनसप्तकेन स्युः।।
  (त्रिशतिका, श्लोक – 73)
अर्थात् —
प्रथम दिन घोड़े को 20 हरड़ दी जाती है, उसके पश्चात् प्रतिदिन क्रमशः 5 – 5 हरड़ बढ़ाते हुए 7 वें दिन कुल 50 हरड़ दी गई तो 7 दिनों में कुल कितनी हरड़ प्रदान की गई।
इस सूत्र तथा उदाहरण को रेखा गणितीय विधि से हल करते हुए यह कहा गया है कि —

श्रेढ़ीक्षेत्रे तु फलं भूमुखयोगार्धलम्बहतिः।
(पाटीगणित, श्लोक – 85)
अर्थात् —
इस उदाहरण को रेखा गणितीय आकार देने पर आधार भुजा तथा सम्मुख भुजा के योग के आधे को शीर्षलम्ब से गुणन करने पर श्रेढ़ी-क्षेत्र (A.P.) का फल या सर्वधन (S) प्राप्त होता है।
उपरोक्त उदाहरण को समलम्ब चतुर्भुज (Trapezium) का आकार प्रदान किया जा सकता है यहाँ समलम्ब चतुर्भुज के क्षेत्रफल के सूत्र से ठीक वही परिणाम प्राप्त करते हैं, जो श्रेढ़ी फल के सूत्र से करते हैं —
= ½×n (a+l)
= ½ × 7 × ( 50 + 20)
= 7 × 35 = 245

महावीराचार्य ने इसके क्षेत्रफल के सूत्र को अपने शब्दों में प्रकट किया है —

अथवा मुखातलयुतिदलम्बगुणं न विषमेचतुरश्रे।
  (गणितसारसंग्रह, क्षेत्रगणित-व्यवहार – 7.50)
अर्थात् —
आधार भुजा तथा सम्मुख भुजा के योग के दल या आधे को अविलम्ब से गुणित करने पर इसका सूक्ष्म या सर्वथा सही क्षेत्रफल प्राप्त होता है।
भास्कराचार्य ने सर्वप्रथम (Trapezium) के लिए समान लम्ब चतुर्भुज नाम प्रदान किया है —

समानलम्बस्य चतुर्भुजस्य मुखोनभूमिं परिकल्प भूमिम् ।
(लीलावती)
उन्होंने इसके क्षेत्रफल का सूत्र अपने शब्दों में पूर्वाचार्यों के समान प्रस्तुत किया है —

चतुर्भुजेऽन्यत्र समानलम्बे लम्बेन निघ्नं कुमुखैक्यखण्डम् ।
  (लीलावती)

अभ्यास (Exercise)

(1)

क्षेत्रस्य यस्य वदनं मदनारितुल्यं
विश्वंभरा द्विगुणितेन मुखेन तुल्या।
बाहु त्रयोदश नख-प्रमितौ च लम्बः
सूर्योन्मितश्च गणितं वद तत्र किं स्यात्।।

अर्थात् —
जिस क्षेत्र की वदन या सम्मुख भुजा 11 है, विश्वम्भरा या आधार भुजा द्विगुणित या 22 है तथा शेष आसन्न भुजाएं क्रमशः 13 तथा 20 है, साथ ही लम्ब सूर्योन्मित या 12 है, उनका गणित या क्षेत्रफल बतायें।

(2)

चतुर्विंशत्यंगुलिभिर्मिमीते ।
चतुर्विंशत्यक्षरा वै गायत्री, गायत्रोऽग्नि-र्यावानग्निर्यावत्यस्य मात्रा तावतैवैनं तान्मिमीते।
स चतुरंगुलमेव उभयतोऽन्तरत उपसमूहति, तावद् व्यूहति ।
तत्राहैवातिरेचयति नो कनीयः करोति।

अर्थात् —
24 अंगुल से नाप करता है। क्योंकि 24 अक्षर की गायत्री होती है। अग्नि ही गायत्री है। अतः अग्नि की मात्रा उतनी ही है, जितनी गायत्री की। उससे ही नापता है। इस वर्ग की भुजा के दोनों ओर 4 – 4 अंगुल बढता है, उतना ही सम्मुख भुजा में से घटा देता है। इससे उसका क्षेत्रफल न अधिक बढ़ता है, न कम करता है।

Area of Trapezium (समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल)

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