Bodhayan Triplet (बोधायन त्रिक)
।। बौद्धायन त्रिक (Baudhayan Triplet) ।।
मिथक :-
समकोण त्रिभुज के भुजाओं तथा कर्ण के बीच संबंध की व्याख्या { (आधार)² + (लम्ब)² = (कर्ण)²} का श्रेय पाइथागोरस (540 ई. पू.) को दिया जाता है।
सत्यता :-
महर्षि बौद्धायन ने 2000 ई. पू. आयत (दो समकोण त्रिभुज) के विकर्ण (कर्ण) के प्रमाण का सामान्य सूत्र प्राप्त करने के लिए इनका एक प्रमुख सहसंबन्ध इस प्रकार है—
दीर्घचतुरस्त्रस्याक्ष्णया रज्जुः पार्श्वमानी तिर्यङ्मानी च यत्पृथग्भूते कुरुतस्तदुभयं करोति ।
(बौद्धायन – शु. सू. – 1. 48)
अर्थात :-
दीर्घचतुरस्त्र (आयत) की पार्श्वमानी (लम्ब) तथा तिर्यङ्मानी (आधार) नामक भुजाएं जितना अलग-अलग वर्ग प्रमाण बनाती है, उन पर खींची गई अक्ष्णया रज्जु (विकर्ण) उनके योगफल जितना वर्ग क्षेत्रफल बनाता है।
इस प्रकार सिद्ध है कि –
(तिर्यङ्मानी)² + (पार्श्वमानी)² = (अक्ष्णया रज्जु)²
अर्थात्
(आधार)² + (लम्ब)² = (कर्ण)²
अतः – b² + p² = h²
कात्यायन शूल्ब-सूत्र में समकोण त्रिभुज की दोनों भुजाओं तथा कर्ण इन त्रिक (Triplet) की विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार किया गया है —
यावत् प्रमाणानि समचतुरस्त्राण्येकीकर्तुं चिकीर्षेदेकोनानि तानि भवन्ति,
तिर्यग् द्विगुणान्येकत एकाधिकानि।
त्र्यस्त्रिर्भवति तस्येषुस्तत् करोति।
(कात्यायन शूल्ब-सूत्र – 6.7)
इस श्लोक का सर्वाधिक संभव आशाय इस प्रकार प्रकट किया गया है –
(I) किसी भी प्रमाण (n) वाली भुजा (a) से निर्मित समचतुरश्र या वर्ग हो, उसे अन्य {(n² -1)/2} प्रमाण की भुजा (b) वाले वर्ग के साथ एकीकृत कने या जोड़ने पर भुजा (b) का प्रमाण नवनिर्मित वर्ग की भुजा (c) से 1 कम होता है।
(II) एक वर्ग की तिर्यङ्मानी या पार्श्व भुजा (a) के प्रमाण को द्विगुणित करके वर्ग बनाकर अन्य द्विगुणित भुजा (b) वाले वर्ग के साथ जोड़ने पर निर्मित भुजा (c) का प्रमाण पिछले वर्ग की भुजा (b) से 1 अधिक अर्थात् 2 अधिक होता है।
(III) इन विशेषताओं से युक्त भुजाओं से बनने वाला त्र्यस्त्रि या त्रिभुज भी इन्हीं विशेषताओं वाला होता है। इन पर निर्मित इषु या कर्ण इस त्रिभुज को बनाता है।
इससे हमें कुछ निश्चित वर्गों के योगफल एवं उनकी भुजाओं के मध्य तथा समकोण त्रिभुज की भुजाओं के बीच यह सहसंबन्ध प्राप्त होता है —
वर्गों का योगफल — n² + {(n²-1)/2}² = {(n²+1)/2}²
समकोण त्रिभुज की भुजाएं = n, (n²-1)/2, (n²+1)/2
या
वर्गों का योगफल — 2n, (n²-1), (n²+1)
शुल्ब सूत्रों में इस सहसंबन्ध का अनुसरण करते हुए समकोण त्रिभुज के ऐसे अनेक त्रिक (Triplet) के उदाहरण दिए गए हैं, जिसमें b का प्रमाण c से 1 कम हो। जैसे :-
त्रिकचतुष्कयोः पञ्चिकाऽक्ष्णया रज्जुः ।
(आपस्तम्ब शु. सू. – 5. 9)
त्रिक (Triplet) :- 3, 4, 5
द्वादशिकापञ्चिकायोस्त्रयोदशिकाऽक्ष्णया रज्जुः ।
(आपस्तम्ब शु. सू. – 5. 12)
त्रिक (Triplet) :- 5, 12, 13
शुल्ब सूत्रों में इस सहसंबन्ध का अनुसरण करते हुए यह भी ज्ञात किया है कि :-
द्विरभ्यस्ताभिश्श्रोणी।
(आपस्तम्ब शु. सू. – 5. 12)
ताभिस्त्रिभिरभ्यस्ताभिरंसो,
चतुरभ्यस्ताभिश्श्रोणी ।
(आपस्तम्ब शु. सू. – 5. 12)
शुल्ब-सूत्रकारों को यह भी परिज्ञात था कि त्रिकों के प्रत्येक घटक को द्विगुणित या त्रिगुणित करने पर भी इसी प्रकार के त्रिक प्राप्त किये जा सकते हैं। द्विगुणित करने पर पहली स्थिति के त्रिकों में b से c 2 अधिक तथा द्वितीय स्थिति में 4 अधिक होगा। आपस्तम्ब शुल्ब सूत्र में कहा कि 5, 12, 13 इस त्रिक को द्विगुणित करने पर सौमिकी की श्रोणी तथा 3, 4, 5 को त्रिगुणित तथा चतुर्गुणित करने पर क्रमशः उसकी अंश तथा श्रोणी निर्मित होती है। इस प्रकार —
a b c
5, 12, 13 का द्विरभ्यस्त 10, 24, 26 b से c 2 अधिक
3, 4, 5 का द्विरभ्यस्त 9, 12, 15 b से c 3 अधिक
3, 4, 5 का द्विरभ्यस्त 12, 16, 20 b से c 4 अधिक
इस प्रकार स्पष्ट है कि इन त्रिकों को चाहे किसी भी संख्या से गुणित करके जितने चाहे त्रिक बनाये जा सकते हैं।
B P H
nB nP nH
बौद्धायन त्रिक के अनुप्रयोग (Application of Baudhayan Triplet)
(i) त्रिकोणमितिय कोण (Trigonometric Angle)
(ii) त्रिकोणमितिय अनुपात (Trigonometric Ratio)
(iii)त्रिकोणमितिय सर्वसमीका (Trigonometric Identities)
(iv) त्रिकोणमितिय फलन (Trigonometric Functions)
(v) व्युत्क्रम त्रिकोणमितिय फलन (Inverse Trigonometric Function)
(vi) ऊँचाई और दूरी (Height & Distance)
(vii) निर्देशांक ज्यामिति (Co-ordinate Geometry)
(viii) सरल रेखा (Straight Line)
(ix) समिश्र संख्या (Complex Number)
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